Saturday, 24 September 2016

रामचरित मानस / उत्तर काण्ड

ज्ञानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार।
केहि कै लोभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार।
श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि।।
मृगलोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि।।
अर्थात्---- इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी,तपस्वी,शूरवीर,कवि ,विद्वान और गुणों का धाम है जिसकी लोभ ने मट्टी पलीद न की हो....लक्ष्मी के मद ने किसको टेढ़ा और प्रभुता ने किसको बहरा नहीं कर दिया? ऐसा कौन है जिसे मृगनयनी के नेत्र बाण न लगे हों??
------रामचरित मानस / उत्तर काण्ड

Saturday, 17 September 2016

बाबाहौदेश्वरनाथ धाम , कुण्डा

प्रतापगढ़ जिले के तहसील मुख्यालय कुण्डा से बारह किलोमीटर दक्षिण दिशा में मां गंगा के पावनतट पर विराजमान बाबा हौदेश्वर नाथ धाम की महिमा अपने आप में विलक्षण है।धाम के बगल से अनवरत बहने वाली गंगा नदी का नाम यहीं से जाह्नवी पड़ा है। मलमास में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। दूर दराज से शिव भक्त मंदिर में जलाभिषेक करने आतें हैं।

बाबाहौदेश्वरनाथ धाम से जुड़ी कई किंवदन्तियां हैं-जब महाराज भगीरथ ने भोले नाथकी घोर तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर वरदान स्वरूप मां गंगा को लेकर जा रहे थे तो हौदेश्वर धाम से तीन किलोमीटर पश्चिम वर्तमान में करेंटी घाट के पास जाह्नवी ऋषि तपस्या में लीन थे। गंगा की तेज धारा का गर्जन सुनकर उनकी तपस्या भंग हो गयी। नाराज ऋषि ने गंगा का पान कर लिया।हताश भगीरथ ने शिवलिंग की स्थापना कर वर्तमान में शाहपुर गांवके पास पुन: घोर तपस्या प्रारम्भ की। यहां पर उन्होंने वेदी का निर्माणकिया और तपस्या और हवन-यज्ञ किया।कालान्तर में इस वेदी का नाम बेंती पड़ गया। इसके पश्चात घोर तपस्या से प्रसन्न शिव जी ने पुन: दर्शन देकर बताया कि मां गंगा का जाह्नवी ऋषि ने पान कर लिया है। ऋषि की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करो और गंगा को अपने साथ लेकर जाओ। भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न ऋषि ने सोचा कि यदि गंगा को अपनेमुख से बाहर निकालता हूं तो गंगा जूठी हो जायेंगी । तब ऋषिवर ने अपनी जंघा चीरकर मां गंगा को बाहर निकाला। इसके पश्चात उन्होंने बताया कि इस स्थान से पांच किलो मीटर तक गंगा को जाह्नवी के नाम से जाना जाएगा। आज यह स्थान हौदेश्वर नाथ धाम के नाम से जनपद में विख्यात है। यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा दर्शन के लिए आते हैं। मलमास में श्रद्धालुओं वशिवभक्तों की भारी भीड़ होती है |

Friday, 9 September 2016

"नीति"

लोकयात्रा भयं लज्जा दक्षिण्यम त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात् तत्र संस्थितिम्।।
"भावार्थ"– बुद्धिमान व्यक्ति को उसी स्थान पर निवास करना चाहिए जहाँ के निवासियों में सामाजिक भावना हो,जो जियो और जीने दो के सिद्धांत में विश्वास रखते हो, जिनमें ईश्वर और परलोक का भय हो और जहाँ के लोग बुरा करने से डरते हों तथा बुरा बनने से डरते हों।इसके अलावा दुःख-सुख में एक-दूसरे का साथ निभाते हों।
इससे भिन्न परिस्तिथि वाले स्थान पर मनुष्य को निवास करने से बचना चाहिये।

Tuesday, 6 September 2016

रामचरित मानस/ लंका काण्ड

उमा रावनहि अस अभिमाना।
जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना।।
अर्थात्--- (ये बात शिवजी के द्वारा उमा को कही गई है) वे कहते हैं-- हे उमा ! रावण को ऐसा अभिमान हो गया जिस प्रकार कि सोते समय टिटहरी नामक पक्षी को होता है जो अपने पैरों को ऊपर करके सोता है।
( दरअसल यह एक विचित्र बात है कि टिटहरी नामक पक्षी जब सोता है तब वह अपने पैरों को ऊपर करके सोता है ।उसे यह गुमान होता है कि आसमान की तरफ पैर करके सोने पर यदि आसमान नीचे गिरता है तो वह उसे अपने पैरों से थाम लेगा । उसे अभिमान होता है कि वह उसके नीचे ऐसा करने से दबेगा नहीं......)
------- रामचरित मानस/ लंका काण्ड