मां ज्वाला जी मंदिर, कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश
जय ज्वाला माँ
हिमाचल प्रदेश
जय ज्वाला माँ
इतिहास- हिन्दू धर्म में माँ का स्थान सर्वोपरि है। “माँ” शब्द हर इन्सान को एक नई शक्ति प्रदान करता है। यह स्थान धूमा देवी का स्थान है। यह हिमाचल में है और इसकी मान्यता ५१ शक्ति पीठो में सर्वोच्य है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर माँ भगवती सती की जीभ गिरी थी तथा भगवान शिव उन्मत-भेरव रूप से निवास करते हैं । इस तीर्थ में देवी के दर्शन एक दिव्य ज्योति के रूप में किये जाते हैं । यह एक चमत्कार ही है कि पर्वत की चटान से ९ विभिन स्थानों पर ज्योति बिना किसी ईधन के स्वतः प्रज्वलित होती है । इसी कारण देवी “माँ ज्वाला जी" के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हुईं और उनका यह स्थान ज्वालामुखी नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मार्ग परिचय- माँ ज्वाला जी का स्थान हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले में स्थित है । यहाँ पर लोग पूरे भारत से आते है । यहाँ पर पंजाब राज्य में जिला होशियारपुर से गोरीपुर डेरा होते हुए बसे ज्वाला जी पहुचती है । यहाँ से माँ का स्थान लगभग २० किलोमीटर की दुरी पर है । इसके अलावा पठानकोट से कागड़ा होते हुए भी यात्री ज्वाला माँ के मंदिर पहुच सकते है । बस से कागड़ा से ज्वाला माँ के मंदिर का रास्ता लगभग २ घंटे का समय लगता है । यहाँ से नियमत अन्तराल पर बस आती रहती है।
मंदिर का इतिहास - श्री ज्वाला जी मंदिर के निर्माण के विषय में एक कहानी प्रचलित है , जिसके अनुसार सतयुग में सम्राट भूमिचन्द्र ने ऐसा अनुमान लगाया कि भगवती सती की जिब्हा भगवान विष्णु के धनुष से कटकर हिमालय के धोइलिधर पर्वतो पर गिरी है । काफी प्रयत्न के बाद भी वो उस स्थान को नहीं ढुँढ़ सके । इसके बाद उन्होंने नगरकोट - कागड़ा में एक भगवान सती के नाम से एक मंदिर बनवाया। कुछ वर्षो बाद कुछ लोगो ने महाराजा भुमिचंद्र को सुचना दी की उसके एक पर्वत पर ज्वाला निकलते हुए देखी है। सुचना पाकर महाराज वहा पहुचे और उसकी पूजा की। साथ ही साथ उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया। और मंदिर में पूजा के लिये दो पवित्र सधुओ को बुलाया गया और उन्हें पूजा का अधिकार दिया गया। इनके नाम पंडित श्री धर तथा पंडित कमलापति थे। ऐसा माना जाता है की उन्ही के वंशज आज भी मंदिर में पूजा कराते है। ऐसा कहा जाता है कि पंच पांडव ने भी ज्वाला जी की यात्रा की थी और मंदिर का पुन: निर्माण कराया ।
दिव्या ज्योति दर्शन -श्री ज्वाला जी देवी मंदिर में देवी के नव रूप के दर्शन होते है। ये ज्योति कभी कम या कभी अधिक भी होती रहती है। ऐसा माना जाता है कि नवदुर्गा ही १४ भुवनो की रचना करने वाली है। जिनके सेवक-सत्व,रज और तम तीन गुण है। इसके अलावा मंदिर के दरवाजे के सामने चांदी के आले में जो ज्योति है, उसे महाकाली का रूप कहा जाता है। यह ब्रहम ज्योति है तथा मुक्ति व भुक्ति देने वाली है। शेष ज्योतियों के पवित्र नाम व दर्शन इस प्रकार है -
1-चांदी के जाला में सुशोभित मुख्य ज्योति का पवित्र नाम महाकाली है, जो मुक्ति-भुक्ति देने वाली है।
२- इसके पास में ही लोगो को भंडार देने वाली महामाया ' अन्नपूर्णा ' की ज्योति है ।
३- इसके दूसरी तरफ हमारे दुश्मनो का विनाश करने वाली 'चंडी' माता की ज्योति है।
४- हमारे समस्त दुखो का नाश करने वाली ज्योति 'हिंगलाज भवानी' की है |
५- पंचम ज्योति 'विध्वाशनी' है जो शोक से छुटकारा देती है।
६- महा लक्ष्मी की ज्योति, ज्योति कुण्ड में है जो लोगो को धन सम्पदा प्रदान करती है।
७- लोगो को ज्ञान देने वाली माँ सरस्वती भी कुण्ड में विराजमान है
८- माँ अम्बिका, जो लोगो को संतान का सुख देती है , उनका दर्शन भी यहाँ होता है।
९- 'माँ अंजना' जो लोगो को आयु और सुख प्रदान करती है, वह भी इस कुण्ड में दर्शन दे रही है |
जय ज्वाला माँ जय ज्वाला माँ |
मन मेरा बोले ज्वाला माँ ||
गोरख डिब्बी - यह बहुत पवित्र स्थान है यहाँ पर एक छोटे से कुण्ड में जल हमेशा खोलता रहता है ,जो देखने में काफी गरम लगता है, पर माँ की कृपा से वह जल ठंडा होता है। इस स्थान की एक अनोखी बात यह भी है कि छोटे कुण्ड के उपर धुप की जलती ज्योति दिखाने पर जल के उपर एक बड़ी ज्योति प्रकट हो जाती है। इसे "रूद्र कुण्ड" भी कहा जाता है। यह स्थान ज्वाला जी मंदिर की परिक्रमा में कुछ उपर की ओर है। कहा जाता है कि यहाँ पर गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी। वह अपने शिष्य सिद्ध -नागार्जुन के पास डिब्बी धर कर खिचड़ी मांगने गए परन्तु खिचड़ी लेकर वापस नहीं आये और डिब्बी का जल गर्म नहीं हुआ।
सेजा भवन- यह भगवती माँ के शयन का स्थान है जहा पर माता विश्राम करती है। भवन में प्रवेश करते ही भवन के बीचो- बीच संगमरमर का पलंग बना हुआ है, जिसके उपर चांदी लगी हुई है। रात १० बजे शयन आरती के बाद भगवती के शयन के लिये कपड़े और श्रृगार का सामान और साथ में पानी का लोटा और दातुन आदि सामान रखा जाता है। सेजा भवन में चारो ओर महादेवियो और महाकलियो, महालक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ बनी है। इसके साथ ही श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की दी हुए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की हस्तलिखित प्रतिलिपि भी सेजा-भवन में सुरछित है|
श्री राधा कृष्णा मंदिर - गोरख डिब्बी के पास में ही राधा कृष्णा का एक छोटा सा मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को कटोच राजाओ ने बनवाया था।
लाल शिवालय - गोरख डिब्बी से कुछ उपर चढने पर शिव शक्ति और फिर लाल शिवालय के दर्शन होते है। शिव शक्ति में शिवलिंग के साथ ज्योति के दर्शन भी होते है। लाल शिवालय भी बहुत सुन्दर दर्शनीय मंदिर है। जिसकी शोभा देखने लायक है|
सिद्ध नागार्जुन - यह पवित्र स्थान लाल शिवालय से कुछ उपर पडता है। यहाँ पर एक काले रंग की मूर्ति है। इस मूर्ति को सिद्ध नागार्जुन कहते है। इसके बारे में एक कहानी प्रसिद है कि जब गुरु बाबा गोरखनाथ जी काफी देर हो जाने के बाद भी वापस नहीं आये तो उनके शिष्य नागार्जुन ने पहाड़ी पर चड़कर उन्हें देखने लगे की गुरु जी कही दिख तो नहीं रहे है। परन्तु यह स्थान नागार्जुन को इंतना पसंद आया की वह उस स्थान पर ही समाधि लगाकर बैठ गए।
अम्बिकेश्वर महादेव - सिद्ध नागार्जुन से कुछ दुरी पर ही पूर्व की ओर यह मंदिर है। इस स्थान को उन्मत भेरव भी कहते है । श्री शिव महापुराण की पीछे लिखी कथा के अनुसार जहा-तहा भी सती के अंग-प्रत्यंग गिरे, उस-उस स्थान पर शिव जी ने किसी न किसी रूप में निवास किया। यह मंदिर अम्बिकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है ।
टेढ़ा मंदिर - अम्बिकेश्वर महादेव से कुछ ही दुरी पर एक मंदिर में सीताराम जी के दर्शन होते है। कहा जाता है कि एक भूचाल आने पर पूरा मंदिर टेढा हो गया था, परन्तु माँ की कृपा से यह मंदिर गिरा नहीं। आज भी यह मंदिर देखने में टेढा ही दिखता है इसलिये इस मंदिर को लोग टेढ़ा मंदिर के नाम से जानते है
AARAMBH PANDEY
जय ज्वाला माँ
इतिहास- हिन्दू धर्म में माँ का स्थान सर्वोपरि है। “माँ” शब्द हर इन्सान को एक नई शक्ति प्रदान करता है। यह स्थान धूमा देवी का स्थान है। यह हिमाचल में है और इसकी मान्यता ५१ शक्ति पीठो में सर्वोच्य है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर माँ भगवती सती की जीभ गिरी थी तथा भगवान शिव उन्मत-भेरव रूप से निवास करते हैं । इस तीर्थ में देवी के दर्शन एक दिव्य ज्योति के रूप में किये जाते हैं । यह एक चमत्कार ही है कि पर्वत की चटान से ९ विभिन स्थानों पर ज्योति बिना किसी ईधन के स्वतः प्रज्वलित होती है । इसी कारण देवी “माँ ज्वाला जी" के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हुईं और उनका यह स्थान ज्वालामुखी नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मार्ग परिचय- माँ ज्वाला जी का स्थान हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले में स्थित है । यहाँ पर लोग पूरे भारत से आते है । यहाँ पर पंजाब राज्य में जिला होशियारपुर से गोरीपुर डेरा होते हुए बसे ज्वाला जी पहुचती है । यहाँ से माँ का स्थान लगभग २० किलोमीटर की दुरी पर है । इसके अलावा पठानकोट से कागड़ा होते हुए भी यात्री ज्वाला माँ के मंदिर पहुच सकते है । बस से कागड़ा से ज्वाला माँ के मंदिर का रास्ता लगभग २ घंटे का समय लगता है । यहाँ से नियमत अन्तराल पर बस आती रहती है।
मंदिर का इतिहास - श्री ज्वाला जी मंदिर के निर्माण के विषय में एक कहानी प्रचलित है , जिसके अनुसार सतयुग में सम्राट भूमिचन्द्र ने ऐसा अनुमान लगाया कि भगवती सती की जिब्हा भगवान विष्णु के धनुष से कटकर हिमालय के धोइलिधर पर्वतो पर गिरी है । काफी प्रयत्न के बाद भी वो उस स्थान को नहीं ढुँढ़ सके । इसके बाद उन्होंने नगरकोट - कागड़ा में एक भगवान सती के नाम से एक मंदिर बनवाया। कुछ वर्षो बाद कुछ लोगो ने महाराजा भुमिचंद्र को सुचना दी की उसके एक पर्वत पर ज्वाला निकलते हुए देखी है। सुचना पाकर महाराज वहा पहुचे और उसकी पूजा की। साथ ही साथ उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया। और मंदिर में पूजा के लिये दो पवित्र सधुओ को बुलाया गया और उन्हें पूजा का अधिकार दिया गया। इनके नाम पंडित श्री धर तथा पंडित कमलापति थे। ऐसा माना जाता है की उन्ही के वंशज आज भी मंदिर में पूजा कराते है। ऐसा कहा जाता है कि पंच पांडव ने भी ज्वाला जी की यात्रा की थी और मंदिर का पुन: निर्माण कराया ।
दिव्या ज्योति दर्शन -श्री ज्वाला जी देवी मंदिर में देवी के नव रूप के दर्शन होते है। ये ज्योति कभी कम या कभी अधिक भी होती रहती है। ऐसा माना जाता है कि नवदुर्गा ही १४ भुवनो की रचना करने वाली है। जिनके सेवक-सत्व,रज और तम तीन गुण है। इसके अलावा मंदिर के दरवाजे के सामने चांदी के आले में जो ज्योति है, उसे महाकाली का रूप कहा जाता है। यह ब्रहम ज्योति है तथा मुक्ति व भुक्ति देने वाली है। शेष ज्योतियों के पवित्र नाम व दर्शन इस प्रकार है -
1-चांदी के जाला में सुशोभित मुख्य ज्योति का पवित्र नाम महाकाली है, जो मुक्ति-भुक्ति देने वाली है।
२- इसके पास में ही लोगो को भंडार देने वाली महामाया ' अन्नपूर्णा ' की ज्योति है ।
३- इसके दूसरी तरफ हमारे दुश्मनो का विनाश करने वाली 'चंडी' माता की ज्योति है।
४- हमारे समस्त दुखो का नाश करने वाली ज्योति 'हिंगलाज भवानी' की है |
५- पंचम ज्योति 'विध्वाशनी' है जो शोक से छुटकारा देती है।
६- महा लक्ष्मी की ज्योति, ज्योति कुण्ड में है जो लोगो को धन सम्पदा प्रदान करती है।
७- लोगो को ज्ञान देने वाली माँ सरस्वती भी कुण्ड में विराजमान है
८- माँ अम्बिका, जो लोगो को संतान का सुख देती है , उनका दर्शन भी यहाँ होता है।
९- 'माँ अंजना' जो लोगो को आयु और सुख प्रदान करती है, वह भी इस कुण्ड में दर्शन दे रही है |
जय ज्वाला माँ जय ज्वाला माँ |
मन मेरा बोले ज्वाला माँ ||
गोरख डिब्बी - यह बहुत पवित्र स्थान है यहाँ पर एक छोटे से कुण्ड में जल हमेशा खोलता रहता है ,जो देखने में काफी गरम लगता है, पर माँ की कृपा से वह जल ठंडा होता है। इस स्थान की एक अनोखी बात यह भी है कि छोटे कुण्ड के उपर धुप की जलती ज्योति दिखाने पर जल के उपर एक बड़ी ज्योति प्रकट हो जाती है। इसे "रूद्र कुण्ड" भी कहा जाता है। यह स्थान ज्वाला जी मंदिर की परिक्रमा में कुछ उपर की ओर है। कहा जाता है कि यहाँ पर गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी। वह अपने शिष्य सिद्ध -नागार्जुन के पास डिब्बी धर कर खिचड़ी मांगने गए परन्तु खिचड़ी लेकर वापस नहीं आये और डिब्बी का जल गर्म नहीं हुआ।
सेजा भवन- यह भगवती माँ के शयन का स्थान है जहा पर माता विश्राम करती है। भवन में प्रवेश करते ही भवन के बीचो- बीच संगमरमर का पलंग बना हुआ है, जिसके उपर चांदी लगी हुई है। रात १० बजे शयन आरती के बाद भगवती के शयन के लिये कपड़े और श्रृगार का सामान और साथ में पानी का लोटा और दातुन आदि सामान रखा जाता है। सेजा भवन में चारो ओर महादेवियो और महाकलियो, महालक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ बनी है। इसके साथ ही श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की दी हुए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की हस्तलिखित प्रतिलिपि भी सेजा-भवन में सुरछित है|
श्री राधा कृष्णा मंदिर - गोरख डिब्बी के पास में ही राधा कृष्णा का एक छोटा सा मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को कटोच राजाओ ने बनवाया था।
लाल शिवालय - गोरख डिब्बी से कुछ उपर चढने पर शिव शक्ति और फिर लाल शिवालय के दर्शन होते है। शिव शक्ति में शिवलिंग के साथ ज्योति के दर्शन भी होते है। लाल शिवालय भी बहुत सुन्दर दर्शनीय मंदिर है। जिसकी शोभा देखने लायक है|
सिद्ध नागार्जुन - यह पवित्र स्थान लाल शिवालय से कुछ उपर पडता है। यहाँ पर एक काले रंग की मूर्ति है। इस मूर्ति को सिद्ध नागार्जुन कहते है। इसके बारे में एक कहानी प्रसिद है कि जब गुरु बाबा गोरखनाथ जी काफी देर हो जाने के बाद भी वापस नहीं आये तो उनके शिष्य नागार्जुन ने पहाड़ी पर चड़कर उन्हें देखने लगे की गुरु जी कही दिख तो नहीं रहे है। परन्तु यह स्थान नागार्जुन को इंतना पसंद आया की वह उस स्थान पर ही समाधि लगाकर बैठ गए।
अम्बिकेश्वर महादेव - सिद्ध नागार्जुन से कुछ दुरी पर ही पूर्व की ओर यह मंदिर है। इस स्थान को उन्मत भेरव भी कहते है । श्री शिव महापुराण की पीछे लिखी कथा के अनुसार जहा-तहा भी सती के अंग-प्रत्यंग गिरे, उस-उस स्थान पर शिव जी ने किसी न किसी रूप में निवास किया। यह मंदिर अम्बिकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है ।
टेढ़ा मंदिर - अम्बिकेश्वर महादेव से कुछ ही दुरी पर एक मंदिर में सीताराम जी के दर्शन होते है। कहा जाता है कि एक भूचाल आने पर पूरा मंदिर टेढा हो गया था, परन्तु माँ की कृपा से यह मंदिर गिरा नहीं। आज भी यह मंदिर देखने में टेढा ही दिखता है इसलिये इस मंदिर को लोग टेढ़ा मंदिर के नाम से जानते है
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इतिहास- हिन्दू धर्म में माँ का स्थान सर्वोपरि है। “माँ” शब्द हर इन्सान को एक नई शक्ति प्रदान करता है। यह स्थान धूमा देवी का स्थान है। यह हिमाचल में है और इसकी मान्यता ५१ शक्ति पीठो में सर्वोच्य है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर माँ भगवती सती की जीभ गिरी थी तथा भगवान शिव उन्मत-भेरव रूप से निवास करते हैं । इस तीर्थ में देवी के दर्शन एक दिव्य ज्योति के रूप में किये जाते हैं । यह एक चमत्कार ही है कि पर्वत की चटान से ९ विभिन स्थानों पर ज्योति बिना किसी ईधन के स्वतः प्रज्वलित होती है । इसी कारण देवी “माँ ज्वाला जी" के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हुईं और उनका यह स्थान ज्वालामुखी नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मार्ग परिचय- माँ ज्वाला जी का स्थान हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले में स्थित है । यहाँ पर लोग पूरे भारत से आते है । यहाँ पर पंजाब राज्य में जिला होशियारपुर से गोरीपुर डेरा होते हुए बसे ज्वाला जी पहुचती है । यहाँ से माँ का स्थान लगभग २० किलोमीटर की दुरी पर है । इसके अलावा पठानकोट से कागड़ा होते हुए भी यात्री ज्वाला माँ के मंदिर पहुच सकते है । बस से कागड़ा से ज्वाला माँ के मंदिर का रास्ता लगभग २ घंटे का समय लगता है । यहाँ से नियमत अन्तराल पर बस आती रहती है।
मंदिर का इतिहास - श्री ज्वाला जी मंदिर के निर्माण के विषय में एक कहानी प्रचलित है , जिसके अनुसार सतयुग में सम्राट भूमिचन्द्र ने ऐसा अनुमान लगाया कि भगवती सती की जिब्हा भगवान विष्णु के धनुष से कटकर हिमालय के धोइलिधर पर्वतो पर गिरी है । काफी प्रयत्न के बाद भी वो उस स्थान को नहीं ढुँढ़ सके । इसके बाद उन्होंने नगरकोट - कागड़ा में एक भगवान सती के नाम से एक मंदिर बनवाया। कुछ वर्षो बाद कुछ लोगो ने महाराजा भुमिचंद्र को सुचना दी की उसके एक पर्वत पर ज्वाला निकलते हुए देखी है। सुचना पाकर महाराज वहा पहुचे और उसकी पूजा की। साथ ही साथ उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया। और मंदिर में पूजा के लिये दो पवित्र सधुओ को बुलाया गया और उन्हें पूजा का अधिकार दिया गया। इनके नाम पंडित श्री धर तथा पंडित कमलापति थे। ऐसा माना जाता है की उन्ही के वंशज आज भी मंदिर में पूजा कराते है। ऐसा कहा जाता है कि पंच पांडव ने भी ज्वाला जी की यात्रा की थी और मंदिर का पुन: निर्माण कराया ।
दिव्या ज्योति दर्शन -श्री ज्वाला जी देवी मंदिर में देवी के नव रूप के दर्शन होते है। ये ज्योति कभी कम या कभी अधिक भी होती रहती है। ऐसा माना जाता है कि नवदुर्गा ही १४ भुवनो की रचना करने वाली है। जिनके सेवक-सत्व,रज और तम तीन गुण है। इसके अलावा मंदिर के दरवाजे के सामने चांदी के आले में जो ज्योति है, उसे महाकाली का रूप कहा जाता है। यह ब्रहम ज्योति है तथा मुक्ति व भुक्ति देने वाली है। शेष ज्योतियों के पवित्र नाम व दर्शन इस प्रकार है -
1-चांदी के जाला में सुशोभित मुख्य ज्योति का पवित्र नाम महाकाली है, जो मुक्ति-भुक्ति देने वाली है।
२- इसके पास में ही लोगो को भंडार देने वाली महामाया ' अन्नपूर्णा ' की ज्योति है ।
३- इसके दूसरी तरफ हमारे दुश्मनो का विनाश करने वाली 'चंडी' माता की ज्योति है।
४- हमारे समस्त दुखो का नाश करने वाली ज्योति 'हिंगलाज भवानी' की है |
५- पंचम ज्योति 'विध्वाशनी' है जो शोक से छुटकारा देती है।
६- महा लक्ष्मी की ज्योति, ज्योति कुण्ड में है जो लोगो को धन सम्पदा प्रदान करती है।
७- लोगो को ज्ञान देने वाली माँ सरस्वती भी कुण्ड में विराजमान है
८- माँ अम्बिका, जो लोगो को संतान का सुख देती है , उनका दर्शन भी यहाँ होता है।
९- 'माँ अंजना' जो लोगो को आयु और सुख प्रदान करती है, वह भी इस कुण्ड में दर्शन दे रही है |
जय ज्वाला माँ जय ज्वाला माँ |
मन मेरा बोले ज्वाला माँ ||
गोरख डिब्बी - यह बहुत पवित्र स्थान है यहाँ पर एक छोटे से कुण्ड में जल हमेशा खोलता रहता है ,जो देखने में काफी गरम लगता है, पर माँ की कृपा से वह जल ठंडा होता है। इस स्थान की एक अनोखी बात यह भी है कि छोटे कुण्ड के उपर धुप की जलती ज्योति दिखाने पर जल के उपर एक बड़ी ज्योति प्रकट हो जाती है। इसे "रूद्र कुण्ड" भी कहा जाता है। यह स्थान ज्वाला जी मंदिर की परिक्रमा में कुछ उपर की ओर है। कहा जाता है कि यहाँ पर गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी। वह अपने शिष्य सिद्ध -नागार्जुन के पास डिब्बी धर कर खिचड़ी मांगने गए परन्तु खिचड़ी लेकर वापस नहीं आये और डिब्बी का जल गर्म नहीं हुआ।
सेजा भवन- यह भगवती माँ के शयन का स्थान है जहा पर माता विश्राम करती है। भवन में प्रवेश करते ही भवन के बीचो- बीच संगमरमर का पलंग बना हुआ है, जिसके उपर चांदी लगी हुई है। रात १० बजे शयन आरती के बाद भगवती के शयन के लिये कपड़े और श्रृगार का सामान और साथ में पानी का लोटा और दातुन आदि सामान रखा जाता है। सेजा भवन में चारो ओर महादेवियो और महाकलियो, महालक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ बनी है। इसके साथ ही श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की दी हुए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की हस्तलिखित प्रतिलिपि भी सेजा-भवन में सुरछित है|
श्री राधा कृष्णा मंदिर - गोरख डिब्बी के पास में ही राधा कृष्णा का एक छोटा सा मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को कटोच राजाओ ने बनवाया था।
लाल शिवालय - गोरख डिब्बी से कुछ उपर चढने पर शिव शक्ति और फिर लाल शिवालय के दर्शन होते है। शिव शक्ति में शिवलिंग के साथ ज्योति के दर्शन भी होते है। लाल शिवालय भी बहुत सुन्दर दर्शनीय मंदिर है। जिसकी शोभा देखने लायक है|
सिद्ध नागार्जुन - यह पवित्र स्थान लाल शिवालय से कुछ उपर पडता है। यहाँ पर एक काले रंग की मूर्ति है। इस मूर्ति को सिद्ध नागार्जुन कहते है। इसके बारे में एक कहानी प्रसिद है कि जब गुरु बाबा गोरखनाथ जी काफी देर हो जाने के बाद भी वापस नहीं आये तो उनके शिष्य नागार्जुन ने पहाड़ी पर चड़कर उन्हें देखने लगे की गुरु जी कही दिख तो नहीं रहे है। परन्तु यह स्थान नागार्जुन को इंतना पसंद आया की वह उस स्थान पर ही समाधि लगाकर बैठ गए।
अम्बिकेश्वर महादेव - सिद्ध नागार्जुन से कुछ दुरी पर ही पूर्व की ओर यह मंदिर है। इस स्थान को उन्मत भेरव भी कहते है । श्री शिव महापुराण की पीछे लिखी कथा के अनुसार जहा-तहा भी सती के अंग-प्रत्यंग गिरे, उस-उस स्थान पर शिव जी ने किसी न किसी रूप में निवास किया। यह मंदिर अम्बिकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है ।
टेढ़ा मंदिर - अम्बिकेश्वर महादेव से कुछ ही दुरी पर एक मंदिर में सीताराम जी के दर्शन होते है। कहा जाता है कि एक भूचाल आने पर पूरा मंदिर टेढा हो गया था, परन्तु माँ की कृपा से यह मंदिर गिरा नहीं। आज भी यह मंदिर देखने में टेढा ही दिखता है इसलिये इस मंदिर को लोग टेढ़ा मंदिर के नाम से जानते है
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